सावरकर के दर्शन में प्रतिशोध और प्रतिहिंसा के तत्व कितने (भाग -2)
इसी अध्याय का अगला उपशीर्षक है-लाखों हिन्दू स्त्रियों का अपहरण एवं भ्रष्टीकरण। इसमें सावरकर लिखते हैं- मुसलमानों के धार्मिक आक्रमणों के भयंकर संकटों का एक और उपांग है। वह है मुसलमानों द्वारा हिन्दू स्त्रियों का अपहरण कर उन्हें मुसलमान बनाकर हिंदुओं के संख्याबल को क्षीण करना, इस कारण मुसलमानों की संख्या में वृद्धि होती गई। उनकी यह राक्षसी श्रद्धा थी कि यह तो इस्लाम की धर्माज्ञा है। उनके इस काम विकार को तृप्त करने वाली अंध श्रद्धा के कारण उनकी जनसंख्या जिस तीव्र गति से बढ़ने लगी उसी तेजी से हिंदुओं का जनबल कम होता गया। एक सुनियोजित और भयंकर कृत्य है। उस धार्मिक पागलपन में भी एक सूत्र था क्योंकि मुसलमानों का यह धार्मिक पागलपन वास्तव में पागलपन नहीं था, अपितु एक अटल सृष्टि क्रम का अनुकरण कर अराष्ट्रीय संख्या बल बढ़ाने की एक पद्धति थी। हिन्दू मुस्लिम संघर्ष के सैकड़ों साल के उस परंपरागत कालखंड में मुसलमानों ने जिन लक्षावधि हिन्दू स्त्रियों को बलात धर्म भ्रष्ट किया उनको कष्ट देने के कार्य में मुसलमानों का स्त्री समाज अत्यंत ही क्रूरतापूर्वक दिल खोल कर भाग लेता था। उनका आवेश पुरुषों से कम नहीं होता था। वैयक्तिक की बात छोड़ दें सामुदायिक दृष्टि से भी यह कथन पूर्ण रूपेण सत्य है।
इन मुस्लिम महिलाओं को तनिक भी भय नहीं था कि इस जघन्य क्रूर कर्म के लिए हिन्दू उन्हें दंडित करेंगे। विजय प्राप्त करने के बाद हिन्दू स्त्रियों को भ्रष्ट करने वाली मुस्लिम स्त्रियां मुसलमानों द्वारा सम्मानित की जाती थीं। मुस्लिम स्त्रियां आश्वस्त रहती थीं कि विजयी हिंदुओं के सेनापति सिपाही अथवा आम नागरिक तक उनका बाल भी बांका न होने देंगे। क्योंकि हिंदुओं की मान्यता है कि स्त्रियां अवध्य होती हैं चाहे वे अत्चायारिणी हों अथवा शत्रु पक्ष की। - शत्रु की स्त्रियों के प्रति सौजन्य तथा आदर और राष्ट्रघाती एवं कुपात्र पर दिखाई गई उदारता की हजारों घटनाओं में से केवल दो का उल्लेख करना यहां अप्रासंगिक न होगा। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा कल्याण के सूबेदार की वधू को सालंकृत उसके पति के पास पहुंचाने और चिमाजी अप्पा द्वारा पुर्तगीज किला विजित करने के बाद उनकी स्त्रियों को ससम्मान वापस भेजने की उपर्युक्त दोनों घटनाओं का वर्णन आज के हिन्दू बड़े गर्व के साथ करते हैं। परंतु क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है? शिवाजी महाराज अथवा चिमाजी अप्पा को खिलजी आदि मुसलमान सुल्तानों द्वारा दाहिर की गई राज कन्याओं, कर्णावती के राजा राजकुमारियों पर किए बलात्कार और लाखों हिन्दू स्त्रियों की अप्रतिष्ठा की बात याद नहीं आई। उन अप्रतिष्ठित हिन्दू राज महिलाओं और बलात्कारित लाखों हिन्दू ललनाओं के करुण चीत्कार और कलप कलप कर रोने की आवाज से उस समय भी हिंदुस्थान का सम्पूर्ण वायु मंडल सूक्ष्म ध्वनि के साथ सतत प्रकम्पित हो रहा था। उनके चीत्कारों की प्रतिध्वनि शिवाजी और चिमाजी के कानों में क्यों नहीं पड़ी? वे बलात्कार से पीड़ित लाखों स्त्रियां कह रही होंगी कि हे शिवाजी राजा! हे चिमाजी अप्पा!!
हमारे ऊपर मुस्लिम सरदारों और सुल्तानों द्वारा किए गए बलात्कारों और अत्याचारों को कदापि न भूलना। आप कृपा करके मुसलमानों के मन में ऐसी दहशत बैठा दें कि हिंदुओं की विजय होने पर उनकी स्त्रियों के साथ भी वैसा ही अप्रतिष्ठा जनक व्यवहार किया जाएगा जैसा कि उन्होंने हमारे साथ किया है यदि उन पर इस प्रकार की दहशत बैठा दी जाएगी तो भविष्य में विजेता मुसलमान हिन्दू स्त्रियों पर अत्याचार करने की हिम्मत नहीं करेंगे। लेकिन महिलाओं का आदर नामक सद्गुण विकृति के वशीभूत होकर शिवाजी महाराज अथवा चिमाजी अप्पा मुस्लिम स्त्रियों के साथ वैसा व्यवहार न कर सके। उस काल के परस्त्री मातृवत के धर्मघातक धर्म सूत्र के कारण मुस्लिम स्त्रियों द्वारा लाखों हिन्दू स्त्रियों को त्रस्त किए जाने के बाद भी उन्हें दंड नहीं दिया जा सका। हिंदुओं द्वारा मुस्लिम स्त्रियों के सतीत्व संरक्षण के इस कार्य ने इस संबंध में एक प्रभावी ढाल का कार्य किया।"
इस लंबे और बड़ी ही विद्वत्तापूर्ण और आकर्षक लगती भाषा में रचे गए उद्धरण का सार संक्षेप यह है कि जिन सद्गुणों पर हम गर्व करते रहे हैं दरअसल वे सावरकर के मतानुसार हमारे पतन का कारण हैं। हमें हिंसा और प्रतिशोध के रास्ते पर चलना होगा। मुस्लिम समुदाय की निष्ठा हिंदुस्थान के प्रति कभी हो ही नहीं सकती। मुस्लिम और ईसाई धर्मावलंबियों की एक ही नियति है कि वे हिंदुस्थान को अपनी पितृ भूमि और पुण्य भूमि मानकर शरणागत हो जाएं अन्यथा उन्हें दासवत जीवन व्यतीत करना होगा। तब भी शायद उन्हें उनके पूर्वजों के कथित अत्याचारों के दंड स्वरूप प्रतिशोध एवं बदले की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले हिन्दू राजाओं द्वारा अपने अधीन किए गए मुसलमान राजाओं की पत्नियों तथा बहू-बेटियों और प्रजा में सम्मिलित मुस्लिम महिलाओं से बलात्कार न करना एक चूक थी। हिन्दू राजाओं और नागरिकों द्वारा एक साथ अनेक मुस्लिम स्त्रियों से जबरन विवाह करते हुए बलात शारीरिक संबंध बनाकर हिन्दू समुदाय की जनसंख्या बढ़ानी चाहिए थी। आज भी हिन्दू समुदाय को वह चूक नहीं करनी चाहिए जो शिवाजी महाराज और चिमाजी अप्पा ने की जब उन्होंने अपने द्वारा पराजित मुस्लिम सरदारों और सुल्तानों की बहू बेटियों को ससम्मान उनके घर पहुंचा दिया।
बहुत बाद में जब जाने माने अमरीकी युद्ध पत्रकार टॉम ट्रेनर ने 1944 के लंबे साक्षात्कार के दौरान सावरकर से पूछा- आप मुसलमानों के साथ किस तरह का बर्ताव करने की योजना बना रहे हैं? सावरकर का उत्तर था- एक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में, आपके यहां के नीग्रो लोगों के साथ जैसा बर्ताव होता है, उसी भांति। दुर्भाग्यवश यहां भी सावरकर नस्ली घृणा और हिंसा के साथ खड़े नजर आते हैं जो किसी समाज सुधारक या प्रगतिशील चिंतक का लक्षण नहीं है। सावरकर यहां आधुनिक प्रजातांत्रिक उदार सर्वसमावेशी चिंतन से तो दूर चले ही जाते हैं अपितु वे अहिंसा, दया, करुणा, क्षमा, नारी सम्मान आदि हिन्दू धर्म के मूल नैतिक मूल्यों को भी खारिज कर देते हैं। सावरकर हिन्दू धर्म की उदारता और प्रगतिशीलता को अव्यावहारिक मानते हुए नकार कर देते हैं। सावरकर को प्रगतिशील और क्रांतिकारी चिंतक मानने से पूर्व उनके विचारों को भली प्रकार पढ़ना और समझना होगा।
(लेखक डॉ राजू पाण्डेय छत्तीसगढ़ के रायगढ़ स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार, गांधीवादी चिंतक थे। उनके आलेख "सावरकर और गांधी" के संपादित अंश)
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