नया संसद भवन मन्दिर या अजायब घर

संविधान बनाया तो उसे सेक्युलर, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी और पता नहीं क्या-क्या सिद्ध कर दिया. संसद के लिए कोई क्लासिकल नाम नहीं सूझा तो तुष्टिकरण करते हुये उसे लोकतंत्र का मंदिर बता दिया. इस मंदिर में ढ़ंग के लोग नहीं. अंग्रेजों ने जिनके लिए आइपीसी,सीआरपीसी बनाई थी, वो सब गजरा पहनकर लोकतंत्र के मंदिर में घुस गये.बाहर सारा धतकरम करते रहे और मंदिर में घुसकर माननीय बनते रहे.साथ ही सारे दोषों से मुक्त भी होते रहे.उसे मंदिर कहकर बदनाम किया गया, जबकि था वह अजायबघर. उस अजायबघर में भेड़िये, गिद्ध, चील, कौवे और लोमड़ी सब थे.उनपर बस खोल आदमी की थी. वहां जब कोई सचमुच के मंदिर का नाम लेता तो सेक्युलर चीखने लगते, कागज फाड़कर हवा में लहराते और माइक मसल देते थे.70साल तक जिस अभयारण्य को मंदिर कहा था,आगामी 70सालों के लिए उसका नाम बदलकर गिरजाघर या मस्जिद कर दो. सबकी सहिष्णुता का परीक्षण होना चाहिए। लाजिम है हम भी देखेंगे ! Video link
✍️ अनादि

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