भू-जल स्तर की गिरावट के साथ आर्थिक असमानता का विमर्श - अध्ययन रिपोर्ट में भारत में जल संकट
आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भू-जल स्तर गिरता जा रहा है। घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती है, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता। पिछले एक दशक के भीतर भू-जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहां 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहां अब पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है। साफ है कि बीते दस-बारह सालों में दुनिया का भू-जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर घट रहा है, जो कि बड़ी चिंता का विषय है. अगर केवल भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2022 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर वर्ष 2020 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था। आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई थी. गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है। संभवत: इन स्थितियों के मद्देनजर ही जल क्षेत्र में प्रमुख परामर्शदाता कंपनी ईए की एक अध्ययन रिपोर्ट में 2025 तक भारत के जल संकट वाला देश बन जाने की बात कही गई है। अध्ययन में कहा गया है कि औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। देश की सिंचाई का करीब 70 फीसद और घरेलू जल खपत का 80 फीसद हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है।
भूजल अदृश्य जरूर है किंतु इसके महत्व को जानने वाले इसे भूमि में छिपे खजाने की संज्ञा देते हैं। विश्व का लगभग समस्त तरल स्वच्छ जल भूजल के रूप में ही है। जलवायु परिवर्तन ने इस भूजल पर संकट खड़ा किया है। यदि वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो 50 प्रतिशत पेयजल हमें भूजल के माध्यम से ही उपलब्ध होता है, सिंचाई के लिए आवश्यक जल का 40 प्रतिशत हिस्सा भूजल ही देता है और औद्योगिक क्षेत्र की वैश्विक जल आवश्यकता का एक तिहाई हिस्सा भूजल ही पूर्ण करता है। दुनिया भर में 2.5 बिलियन लोग पीने के पानी और घरेलू आवश्यकताओं के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं। भूजल पारिस्थितिक तंत्रों को स्थायित्व प्रदान करता है। यह नदियों के बेस फ्लो को बनाए रखता है। भूजल जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन करने की प्रक्रिया का मुख्य घटक भी है।
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