मजदूर दिवस पर छत्तीसगढ़ का हमारा बोरे बासी तिहार(त्यौहार)

छत्‍तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में घर-घर में सुबह की शुरुआत प्रतिदिन बोरे बासी खाने से होती है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक बोरे बासी का सेवन करते हैं। इस ठेठ देहाती पारंपरिक व्यंजन को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिलाने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने अहम भूमिका निभाई। गांव देहात से निकालकर इसे शहरों के रेस्टारेंट, होटलों में उपलब्ध कराने के लिए पिछले कुछ वर्षों से प्रचार प्रसार किया जा रहा है। 
छत्‍तीसगढ़ में गर्मी के मौसम में लोग इसका सेवन ज्‍यादा करते हैं। बोरे-बासी पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण यह सेहत और स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद है। प्रतिदिन घर-घर में सेवन किए जाने वाले इस पारंपरिक व्यंजन को एक साल में ही विशेष पहचान मिली। 

बासी - चावल को रात में पकाकर ठंडा होने के बाद कांसे अथवा मिट्टी के बर्तन में पानी में डुबाकर रखा जाता है। सुबह सेवन किया जाता है।

बोरे - चावल को सुबह में पकाकर गर्म - गर्म ही पानी में डुबाकर रखा जाता है। रात सेवन किया जाता है। 

डॉक्टरों का मानना है कि बोरे बासी में भरपूर विटामिन बी 12, कैल्शियम और पोटेशियम समेत अनेक पौष्टिक गुणों के साथ हृदय रोग, स्किन रोग और डायरिया समेत अनेक रोगों से लड़ने की क्षमता है।

इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिंन जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं।

बचपन से अब तक हम साथ बैठकर बोरे बासी का सेवन करते हैं।

किसान पुत्र ~ असीम

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