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प्रजातंत्र और सत्ता

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कवि स्व. शिवकुमार पाण्डेय ग्राम - टपरदा , जिला रायगढ़(छ. ग.) (काव्य संग्रह) प्रजातंत्र तो कैद हो गई, सत्ताधीशों के महलों पर... जनता  सिसक रही है देखो, धनपतियों के ही तलुओं पर । खादी आजादी का प्रतीक अब, सूट-बूट में बदल गई है... अप्रासंगिक गांधी-नेहरू, राष्ट्र चेतना नहीं रही है। आजादी जन-जन तक पहुंचे, बापू का तो यह सपना था... सभी सुखी खुशहाल रहें, यह मंत्र सदा उनका जपना था । सत्य अहिंसा वाला गांधी, गोली खा कर ज्यों मरता है... छल पाखण्ड भरे जो नेता, रोज तिजोरी निज भरता है। सत्ता हथियाने के खातिर, दल ने दलदल खड़े किए हैं... स्वप्न दिखाकर  जनता  को वे, अपनी लंका खड़े किए हैं । अर्थतंत्र की पोषक सत्ता, नोटों में गांधी छाप दिए... प्रजातंत्र को अर्थतंत्र में गांधी को लेकर आंक दिए। छल का सूरज डूबेगा, नई रोशनी आएगी... अंधियारी देने वालों को,  जनता  सबक सिखाएगी ! अभय चरण अपराधी घूमे, सत्य न्याय को फांसी हो। अन्यायी को सोने की लंका, मर्यादा जहां वनवासी हो। भूखे पेट रहें श्रम सांधक, शोषण चोर विलासी हो। रक्षक सारे गिद्ध भेड़िये, शासक सत्यानाशी हो सांस...

मजदूर दिवस पर छत्तीसगढ़ का हमारा बोरे बासी तिहार(त्यौहार)

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छत्‍तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में घर-घर में सुबह की शुरुआत प्रतिदिन बोरे बासी खाने से होती है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक बोरे बासी का सेवन करते हैं। इस ठेठ देहाती पारंपरिक व्यंजन को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिलाने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने अहम भूमिका निभाई। गांव देहात से निकालकर इसे शहरों के रेस्टारेंट, होटलों में उपलब्ध कराने के लिए पिछले कुछ वर्षों से प्रचार प्रसार किया जा रहा है।  छत्‍तीसगढ़ में गर्मी के मौसम में लोग इसका सेवन ज्‍यादा करते हैं। बोरे-बासी पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण यह सेहत और स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद है। प्रतिदिन घर-घर में सेवन किए जाने वाले इस पारंपरिक व्यंजन को एक साल में ही विशेष पहचान मिली।  बासी - चावल को रात में पकाकर ठंडा होने के बाद कांसे अथवा मिट्टी के बर्तन में पानी में डुबाकर रखा जाता है। सुबह सेवन किया जाता है। बोरे - चावल को सुबह में पकाकर गर्म - गर्म ही पानी में डुबाकर रखा जाता है। रात सेवन किया जाता है।  डॉक्टरों का मानना है कि बोरे बासी में भरपूर विटामिन बी 12, कैल्शियम और पोटेशियम समे...