"सब नर करहिं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।"
इस चौपाई के साथ लाख चाहने पर भी अपनी लेखनी को नहीं रोक सका क्यूंकि देश भर में रामनवमी पर आयोजित भव्य शोभा यात्राओं ने आनंदित कम चिंतित अधिक किया। राम शब्द का उच्चारण होते ही जिस शांति, स्थिरता, धैर्य, आश्वासन और अनुशासन का अनुभव होता है उसकी तलाश इन शोभा यात्राओं में व्यर्थ थी। राम संकीर्तन की परंपरा में अनेक ऐसी पारंपरिक और आधुनिक संगीत रचनाएं हैं जो अपनी कोमलता और मृदुलता के लिए विख्यात हैं, जिन्हे सुनने के ताप हर लेता है। किंतु इन शोभा यात्राओं में किसी देशव्यापी अलिखित अज्ञात सहमति से कुछ निहायत ही ओछे और भड़काऊ नारे लगाए जा रहे थे। यह तय कर पाना कठिन था कि डीजे का शोर अधिक कर्ण कटु और भयानक था या इन नारों के बोल, बहरहाल दोनों का सामंजस्य उस भय को पैदा करने में अवश्य सफल हो रहा था जिसकी उत्पत्ति इन शोभा यात्राओं का अभीष्ट थी। यह ध्वनि प्रहार इतना भीषण था कि तुलसी मानस के मर्मज्ञ उन सैकड़ों चौपाइयों और दोहों को क्षतविक्षत पा रहे थे जिन्होंने - "सब नर करहिं परस्पर प्रीति। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।" के मंत्र को हमारे सामाजिक जीवन का मूल राग बनाने में अहम ...