प्रोजेक्ट चीता: एक शानदार मीडिया इवेंट लेकिन…
यदि आप भारतीय मीडिया की इस बात पर भरोसा करते हैं कि ‘प्रोजेक्ट चीता’ चीतों के संरक्षण हेतु प्रारंभ किया गया विश्व में अपने ढंग का अनूठा कार्यक्रम है और इससे भारत के घास के मैदानों की स्थिति में सुधार होगा तो यह जान लीजिए कि गलत तथ्यों के आधार पर फिर से आपकी भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है। वन्य प्राणी संरक्षण का सुदीर्घ अनुभव रखने वाले अनेक विशेषज्ञ प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठाते रहे हैं। जाने माने विशेषज्ञ वाल्मीक थापर के अनुसार भारत में मुक्त रूप से भ्रमण करने वाले चीतों की विशाल आबादी कभी नहीं रही। अन्य देशों में जहाँ इनकी आबादी हजारों में थी, हमारे यहां इनकी संख्या सीमित रही। जो चीते यहां मौजूद थे वे भी राजे महाराजाओं द्वारा अफ्रीका (विशेषकर केन्या) से मंगाए गए थे जिनका उपयोग काले हिरण के शिकार के लिए किया जाता था। इनमें से कुछ पालतू चीते जंगलों में भाग गए। पिछली कुछ शताब्दियों में चीतों की प्राकृतिक आबादी हमारे यहां नहीं रही है। यह कहा जाता है कि अकबर के पास एक हजार चीते थे। यह कहां से आए इस बात को लेकर अनिश्चितता है किंतु इतना तय है कि इनमें एक बड़ी संख्या उपहार में प्रा...