संविधान पर संकट: भारतीयकरण या ब्राह्मणीकरण
(लेखक डॉ राजू पाण्डेय छत्तीसगढ़ के रायगढ़ स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार, गांधीवादी चिंतक हैं।) न्याय प्रणाली में मनुवादी सोच की पुनर्प्रतिष्ठा के प्रयासों को न्याय व्यवस्था के भारतीयकरण का नाम दिया जा रहा है। नागरिक अधिकारों और संविधान के संरक्षक सर्वोच्च न्यायालय पर यदि ब्राह्मणवादी सोच हावी हो गई तब संविधान पर भी संकट आ सकता है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही संविधान के भारतीयकरण की मांग कट्टर हिंदूवादी संगठनों और भाजपा के कुछ बड़बोले बयानवीरों द्वारा उठाई जाती रही है। बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रखर विरोध के कारण सरकार संविधान से छेड़छाड़ का साहस तो नहीं कर पाई है किंतु संविधान का एक धर्म सम्मत पाठ तैयार करने की कोशिश अवश्य की गई है जो संविधान की मूल प्रवृत्ति से सर्वथा असंगत है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जब संविधान को "हमारे लिए पवित्र 'गीता' महाग्रंथ के आधुनिक संस्करण की तरह" बताते हैं और राष्ट्रपति आदरणीय रामनाथ कोविंद कहते हैं कि "हर सांसद का यह दायित्व बनता है कि वे संसद रूपी लोकतंत्र के इस मंदिर में उसी श्रद्धा भाव से अपना आचरण करें,...